ज्ञान का गुरुकुल - 3
आज सुबह सुबह मेरे मित्र हंसमुख लाल जी किसी नौजवान के साथ आये और कहने लगे : भाईसाहब , अपने " ज्ञान के गुरुकुल" की ख्याति दूर दूर तक फैल चुकी है । बड़ी संख्या में लोग इसमें अध्ययन करने हेतु आ रहे हैं । बूझो तो जानें कि मेरे साथ कौन हैं ?
मैंने उस नौजवान को देखा । किसी रईसजादे का पुत्र लग रहा था । संभ्रांत दिखाई दे रहा था । लेकिन मैंने उसे पहले कभी देखा नहीं था, इसलिए पहचान नहीं पाया ।
हंसमुख लाल जी ने बताया कि ये भारत के जाने-माने उद्योगपति के पुत्र हैं । सारे सैक्टर्स में इनका व्यवसाय है लेकिन बॉलीवुड में इनका कोई व्यवसाय नहीं है । उसी के बारे में जानने आये हैं । फीस जमा करा दी है ।
मैंने कहा : कहो वत्स । क्या शंका है ?
उसने कहा : हम लोग बॉलीवुड में एंट्री करना चाहते हैं । मुझे तो यह सैक्टर बहुत अधिक पसंद है इसलिए मैंने पापा को इस सैक्टर में पैसा लगाने के लिए बड़ी मुश्किल से पटाया है । मेरे पापा कहते हैं कि बॉलीवुड तो माया नगरी है और माया नगरी का कोई ठिकाना नहीं होता है। यहां पर जो दिखता है वह वैसा ही हो , आवश्यक नहीं है । बल्कि यूं कहें तो ज्यादा सही होगा कि जो दिखता है उसके ठीक उलट निकलता है। इसलिए सोच समझ कर कदम बढ़ाना । अब आप ही बताइए कि मुझे क्या करना चाहिए।
मैंने कहा : अच्छा विचार है आपका ।आप इसमें पैसा अवश्य लगाएं लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है । बॉलीवुड में पिछले तीस वर्षों से अंडरवर्ल्ड और प्रगतिवादियों का साम्राज्य है । ये जिसको चाहें उसको हीरो/हीरोइन बना देते हैं । फिल्मों में अधिकतर पैसा अंडरवर्ल्ड का ही लगा हुआ है । अंडरवर्ल्ड की इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं खड़कता है । जो अंडरवर्ल्ड की बात नहीं मानता उसका अंजाम टी सीरीज के मालिक गुलशन कुमार की तरह होता है अर्थात "मौत" के घाट उतार दिया जाता है ।
इसलिए बॉलीवुड में सफल होना है तो अंडरवर्ल्ड को "माई बाप" मानना होगा । बॉलीवुड में ऐसे बहुत सारे हीरो "किंग" बन गये , " भाई" बन गये जो अंडरवर्ल्ड के सहयोगी हैं और वे आज राज कर रहे हैं । वे जिसे चाहें पीट दें , गाड़ी चढ़ाकर कुचल दें , अपने मनोरंजन के लिए जीव जंतुओं की हत्या कर दें लेकिन उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है । इसलिए पहला फंडा है " जल में रहकर मगर से बैर नहीं " ।
वो बोला : प्रभु , हम लोग तो व्यापारी हैं और व्यापारी तो मगर से क्या, मछली से भी बैर नहीं करता है । पता नहीं कब कौन उसके लिए कब्र खोद दे ।
" बिल्कुल ठीक । दूसरा ग्रुप है प्रगतिवादियों का । इनका एक गैंग बना हुआ है । ये "राइट विंग " के खिलाफ हमेशा प्रोपेगैंडा चलाते रहते हैं । इनका बस चले तो पूरे बालीवुड से ही नहीं पूरे भारत से अपने विरोधियों को मार मार कर भगा दें । इनका सबसे बड़ा हथियार है " झूठ " । ये लोग अपनी फिल्मों में यथार्थ के नाम पर केवल झूठ दिखाते हैं । झूठे प्रपंच रचते हैं । यदि समुदाय विशेष के व्यक्ति के साथ कोई भी घटना कैसे भी घटित हो जाये ,तो ये लोग अपने हाथों में "प्लाकार्ड" लेकर सड़कों पर आ जाएंगे और उन पर लिखा होता है " I m Hindu , I m ashamed " . जब बहुसंख्यक समाज के व्यक्ति के साथ कोई घटना घटती है तो ये अपने अपने बिलों में जाकर गहरी नींद में सो जाते हैं । अभी कुछ दिन पूर्व "पालघर" में दो निर्दोष साधुओं की नृशंसता से पुलिस की मौजूदगी में हत्या कर दी थी लेकिन ये अपने बिलों में दुबके पड़े रहे लेकिन जैसे ही अमरीका में एक घटना घटी , ये अपने अपने दड़बों से निकल कर बाहर आकर शोर मचाने लगे । दोहरा चरित्र इनकी सबसे बड़ी विशेषता है "।
वो बोला : भगवन , आपने मुझे बहुत अमूल्य ज्ञान दिया है । कृपया ये बताओ कि मैं किस प्रकार की फिल्म बनाऊं जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट हो जाये ?
" बहुत सुंदर प्रश्र किया है वत्स । फिल्म बनाने के लिए दो तीन फंडा ध्यान में रखो । पुरातन समाज , उनके भगवान , उनके प्रतीक , धर्म , संस्कृति की जमकर खिल्ली उड़ाओ । लोग बहुत पसंद करते हैं । और ताज्जुब की बात है कि उसी समाज के तथाकथित आधुनिक लोग उस पर तालियां बजाकर आनंदित होते हैं । ऐसा लगता है कि ये दर्शक वो हैं जिनकी मां को कोई गाली दे रहा होता है और ये उन गालियों पर तालियां बजाकर खुश हो रहे होते हैं जैसे कि वो इनकी मां नहीं होकर कोई और हो । और हां , " हिंदी " का खूब मज़ाक उड़ाना । हिन्दी फिल्मों के दर्शक इसे बहुत पसंद करते हैं । वो अभी भी अंग्रेजों और अंग्रेजी के गुलाम बने हुए हैं । फिल्म में एक ठाकुर दिखाना जिसके अत्याचारों से सब लोग त्राहि त्राहि कर रहे हों । असल जिंदगी में भगवान श्रीराम भी क्षत्रिय (ठाकुर) थे और वे राम राज्य अर्थात खुशहाली, संपन्नता और शान्ति के लिए प्रसिद्ध थे । लेकिन लोगों को कामपंथियों का प्रोपेगैंडा बहुत पसंद आता है ।
फिल्म में एक "कपटी" पंडित जिसके चोटी और जनेऊ जरूर होना चाहिए , अवश्य रखना है । सारी पोंगा पंथी जो असल जिंदगी में नहीं होती है , वह जरूर दिखानी है जिससे यह जाति बदनाम हो । जब किसी पंडित की पिटाई होती है तो लोग बहुत ताली बजाते हैं । चाहे असल जिंदगी में आचार्य "चाणक्य" पेशवा " बाजीराव" जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मण रहे हों और वेद , पुराण , उपनिषदों के रचयिता ब्राह्मण ही क्यों ना रहे हों । लेकिन दिखाना तो इनको नकारात्मक ही है ।
एक लोभी , लालची , मक्कार सेठ जरूर दिखाना चाहे देश में जितने स्कूल , कॉलेज , अस्पताल , अनाथालय , वृद्धाश्रम , नारी केन्द्र , धर्मशाला आदि बनवा कर समाजोपयोगी काम किये हों इन्ही सेठों ने । फिर भी उसको दुष्ट ही बताना । क्योंकि कामपंथियों को यही ऐजेण्डा स्यूट करता है । इस तरह के पात्र और सीन पर खूब ताली पीटेंगे लोग । बहुसंख्यक समुदाय के अलावा अन्य समुदायों के धार्मिक गुरुओं को भगवान से भी ज्यादा महान बताना जैसे कि वे दया और करुणा के अवतार हों और धरती पर भेजे गए देवदूत हों । भूलकर भी अन्य धर्मों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलना अन्यथा जान से हाथ धोना पड़ेगा " ।
मैंने आगे कहा : वैसे तो मेरे पास बताने को बहुत कुछ है लेकिन आज मुझे कुछ अति आवश्यक कार्य याद आ गया है । इसलिए आज का ज्ञान मैं यहीं पर समाप्त करता हूं ।
वो बोला : प्रभु , आपने जो इतना ज्ञान दे दिया है , यदि इसी को ध्यान में रखकर मैं फिल्म बना लूंगा तो सुपर डुपर हिट तो वैसे ही हो जायेगी वो । आपका बहुत बहुत आभार। अब मुझे जाने की अनुमति प्रदान करें , तात ।
वो अपने और मैं अपने काम पर चले गए ।
Seema Priyadarshini sahay
20-Jul-2022 07:02 PM
बहुत खूबसूरत
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Gunjan Kamal
20-Jul-2022 01:00 AM
शानदार
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Milind salve
19-Jul-2022 10:46 AM
बहुत खूब
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